Replication of bacterial chromosome & Plasmids
Replication of bacterial chromosome - replication अथवा multiplication के समय bacterial chromosome कोशिका झिल्ली अथवा मीसोसोम से जुड़ जाता है तथा Y (Fork) के समान दिखाई देते हैं | DNA अणु के दोनों स्टैण्ड्स धीरे-धीरे खुलने लगते हैं तथा खुले हुए एकल स्ट्रैन्ड पर नया DNA स्टैण्ड बनता जाता है। Replication की क्रिया पूर्ण होने पर DNA के दो सम्पूर्ण अणु बन जाते हैं।
दोनों ही कोशिका झिल्ली से जुड़े होते हैं। कोशिका झिल्ली की अभिकेन्द्रीय वृद्धि तथा कोशिका भित्ति के निर्माण के फलस्वरूप दो कोशिकाएँ बन जाती हैं। दोनों में ही एक-एक अणु DNA बँट जाते हैं।
प्लाज्मिड (Plasmid) –– bacterial cell में पाये जाने वाले मुख्य गुणसूत्र के अतिरिक्त कुछ अन्य DNA के अणु भी पाये जाते हैं, जो प्लाज्मिड्स कहलाते हैं। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लेडरबर्ग (Lederberg) नाम वैज्ञानिक द्वारा 1952 में अतिरिक्त गुणसूत्रीय वंशागति निर्धारकों (Extra chromosomal hereditary determinants) के लिये किया गया।
प्लाज्मिड्स की परिभाषा निम्नानुसार दी जा सकती है। प्लाज्मिड्स छोटे आकार के सहसंयोजी, वृत्ताकार तथा स्वत: गुणन की क्षमता रखने वाले वे आनुवंशिक एकक हैं जीवाणुओं में अतिरिक्त गुणसूत्रीय अवस्था में स्थायी रूप से वंशागत होते हैं।
आधुनिक अन्वेषणों से ज्ञात हुआ है कि जीवाणुओं में 1-20 की संख्या में एक अथवा अलग-अलग प्लाज्मिड्स पाये जाते हैं।
इन्हें छोटे गुणसूत्र (Mini chromosome) भी कहा जाता है। कुछ प्लाज्मिड्स में मुख्य गुणसूत्र से जुड़ने की क्षमता पायी जाती है। ये एपीसोम (Episome) कहलाते हैं। प्लाज्मिड्स को आनुवंशिक फैक्टर (Genetic factor) अथवा अतिरिक्त गुणसूत्रीय DNA अणु (Extra chromosomal DNA molecule) कहते हैं।
प्लाज्मिड्स के प्रकार (Types of plasmids)–कार्य के आधार पर प्लाज्मिड्स निम्न तीन प्रकार के होते हैं—
1. आर. प्लाज्मिड (R. plasmids) – इन प्लाज्मिड्स पर प्रतिजैविकों के प्रतिरोधी जीन्स
पाये जाते हैं। इन प्रतिजैविकों (Antibiotics) में क्लोरेमफेनिकोल, स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासायक्लिन, सल्फोनामाइड आदि शामिल है।
2. कोल-प्लाज्मिड (Col-plasmids)-- ये कोलिसीन (Colicin) नामक रसायन का उत्पादन करने वाले प्लाज्मिड्स हैं। यह रसायन अन्य जीवाणुओं के लिये घातक होता है।
3. एफ-कारक अथवा एफ.-प्लामिड (F-factor or plasmid) – इन प्लाज्मिड्स पर लैंगिक जनन अथवा DNA स्थानान्तरण की क्रिया को नियंत्रित करने वाले जीन्स पाये जाते हैं। F- कारक युक्त कोशिका को F+ तथा इससे रहित जीवाणु को F- कहा जाता है। कारक की उपस्थिति के कारण F+ जीवाणु दाता (Donor) की तरह कार्य करता है जबकि F- जीवाणु ग्राही (Recipient) की तरह व्यवहार करता है।
प्लाज्मिड का उपयोग (Uses of Plasmids)
जैव तकनीक तथा आनुवंशिक अभियांत्रिकी के विकास के बाद प्लाज्मिड्स का उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है। इन क्षेत्रों में प्लाज्मिड्स का मुख्य उपयोग जीन स्थानान्तरण हेतु वाहक (Vector) के रूप में होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण प्लाज्मिड्स के माध्यम से मानव इन्सुलिन जीन का स्थानान्तरण ई. कोलाई में है। इसकी सहायता से मानव इन्सुलिन का उत्पादन इस जीवाणु द्वारा किया जा रहा है। इस तकनीक को DNA पुनर्संयोजन तकनीक (Recombinant DNA technology) कहते है। इसी प्रकार हेपेटाइटिस B वैक्सिन का उत्पादन भी इस तकनीक द्वारा किया जा रहा है। DNA पुनर्संयोजन तकनीक में प्लाज्मिड का प्रथम प्रयोग 1973 में किया जब केनामाइसिन प्रतिरोधी जीन को PSC101 नामक प्लाज्मिड पर क्लोन करने में सफलता प्राप्त हुई है।


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